Wednesday, April 28, 2010

एक कहानी

डाली से गिरे सूखे पड़े पत्ते में अभी भी
छुपा हुआ है कहीं तो थोड़्हा हरा रंग
आज कल दर्द में भी वो खुश दीखता हैं
शायद उसे मिला है ओस की बूंदों का संग

वो खिल खिला रहा हैं
बातें किसी तो वो कर रहा हैं
वो देखो उस छाव में
किसी से वो कुछ जिकर कर रहा हैं


होठों उसके भीगे हुए हैं
शायद वो पानी मई कहीं लगे हुए हैं
नहीं नहीं हैं, वो कहीं तो
किसी लिपस्टिक से दबे हुए हैं

जब में यहाँ से कुछ साल पहले गुजरा था
वो कहीं कोने में सूखा पड़ा था
कुछ शायद उसको कहीं से मिल गया हैं
सिर्फ दो बूंदों से वो इतना खिल गया हैं

क्या हैं इसका इतना गहरा राज
जो ये हमे नहीं बताता हैं
ख़ुशी इसकी देख कर लगता हैं
जरुर इसको कोई बहुत भाता हैं

एक दिन हमने यह योजना बनायीं
आखिर कौन हैं जो इसको इतना भा रहा हैं
वो देखो नीचे पड़े पत्ते को
कोई अपने गले से लगा रहा है

कहाँ से आई है यह दो बूंदे
जो इसको दो घुट पिला रही है
सुनहरा हरा रंग बनके
उसके हरदे मे समां रही है

लूट रहा है वो इन बूंदों को jaam समझ कर
नशे मे धुत्त लग रहा है वो
आखिर क्यों न हो वो सूखा पत्ता इस नशे मे
पीने के लिए कई सालों से तरस रहा है वो

सांस ले रहा है वो इस खुली हवा मे अब तो
अब कलि शाम उसके ख़ुशी के उजाले मे कम पड़ जायेगी
पी लेगा यह सारी खुशियाँ बंद बूंदों मे मिठास की
कडवी लगने वाली किस्मत शक्कर से भरे घोल मे जम जायेगी

नशे में चूर है इस सूखे पत्ते की मद भरी यह शाम
और उसको बूंदे अपने दिल से लगा रही है
मुसाफिर बनके के वो आई थी आसमा से यहाँ
अब पत्ते का खालीपन अपने मे समां रही है

6 comments:

संजय भास्‍कर said...

beautiful

Anonymous said...

"डाली से गिरे सूखे पड़े पत्ते में अभी भी
छुपा हुआ है कहीं तो थोड़्हा हरा रंग
आज कल दर्द में भी वो खुश दीखता हैं
शायद उसे मिला है ओस की बूंदों का संग
....
नशे में चूर है इस सूखे पत्ते की मद भरी यह शाम
और उसको बूंदे अपने दिल से लगा रही है
मुसाफिर बनके के वो आई थी आसमा से यहाँ
अब पत्ते का खालीपन अपने मे समां रही है"

अकेलेपन से निजाद दिलाता मिलन सुखदायी ही होता है - शुभकामनाएं

राम त्यागी said...

welcome to blogging ...

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Kailash Chander Verma said...

Thanks doston, It would be continuing now, hindi poems n shayris too, I wanna read some good ones of urs, let me know urs

Rambo Bachalakuri said...
This comment has been removed by the author.
Rambo Bachalakuri said...

wow.. Bhete.. wow :)